Skip to main content

फसलों में जैव उर्वरक का महत्व एवं उपयोग

फसलों में जैव उर्वरक का महत्व एवं उपयोग
फसलों में जैव उर्वरक का महत्व एवं उपयोग


फसलों में जैव उर्वरक का महत्व एवं उपयोग फसलों का भरपूर उत्पादन बढ़ाने में नि:संदेह उन्नत किस्म के बीजों, रासायनिक, उर्वरकों, कीटनाशक व खरपतवारनाशक दवाओं, कृषि यंत्रों और सिंचाई साधनों का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान विगत 4 दशकों में देखने में आया हैं,

 लेकिन विशेषकर रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग और कीटनाशक व खरपतवार नाशक दवाओं के अंधांधुध व अनियंत्रित उपयोग से आज न केवल हमारी जीवंत मिट्टी की उर्वरा शक्ति और उसकी फसल/वातावरण भी दूषित हो रहा है वरन् मिट्टी की उर्वरा शक्ति और फसल उत्पादन क्षमता पर अवांछनीय प्रभाव देखा जा रहा है तथा हमारे चारों ओर फैला पर्यावरण/वातावरण भी दूषित हो रहा है।

 मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले लाभकारी सूक्ष्मजीवाणुओं और बड़े जीव जंतुओं की संख्या व उनकी क्रियाशीलता में कमी देखी जा रही है।... 

 रबी फसल में पाले से बचाव के उपाय पाला किसी प्रकार की बीमारी न होते हुए भी विश्वकृ विभिन्न फसलों, सब्जी, फूल एवं फलोत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। 

परीक्षणों से पाया गया कि पाले के कारण सब्जियों में 80-90% दलहनी फसलों में 60-70 प्रतिशत तथा अनाज वाली फसलों में 10-15 प्रतिशत तक का नुकसान हो जाता है। 




इसके अतिरिक्त फलदार पौधे जैसे-पपीता व केला आदि में 80-90 प्रतिशत नुकसान पाले के द्वारा देखा गया है। पाले से सर्दी के मौसम में जब तापमान 0 डि.से. से नीचे गिर जाता है, तो हवा में उपस्थित नर्मी ओस की छोटी-छोटी बूँदे बदलकर बर्फ के छोटे-छोटे कणों का रूप ले लेती हैं, और यह कण जमीन पर उपस्थित पौधों व अन्य दिसम्ब के अं -पदार्थों पर जम जाते हैं। इसे ही पाला या तुषार कहते हैं। पाला अधिकतर दिसम्बर व जनवरी माह में पड़ता है। 

 सरसों की फसल में कीट प्रबंधन 

विश्व खाद्य संगठन द्वारा वर्ष 2000 से 2004 के आधार पर जारी सूचनाओं के आधार पर भारत विश्व में चीन और कनाडा के बाद तीसरा सबसे बड़ा राई-सरसों उत्पादक देश हैं।

 देश में राई-सरसों समूह की सात मुख्य फसलें तिलहनी फसल के रूप में उगायी जाती हैं जिनमें तोरिया, गोभी-सरसों, पीली सरसों, भूरी सरसों, तारामीरा, राई एवं करन राई मुख्य फसलें हैं।

 राई जिसे आमतौर पर सरसों के नाम पर भी जाना जाता है को कुल क्षेत्रफल के लगभग तीन चौथाई से भी अधिक हिस्से में उगाया जाता हैं।

 इसके बाद तोरिया, पीली सरसों और भूरी सरसों तथा अन्य फसलों का स्थान आता हैं। सरसों की फसल कृषकों में बहुत लोकप्रिय होती जा रही है, क्योंकि इससे कम लागत व सिंचाई में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ कमाया जा सकता हैं। 

भारत में सरसों का सबसे अधिक उत्पादन राजस्थान राज्य (42%) में होता है। 

सरसों का उत्पादन करने वाले अन्य राज्य मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम आदि प्रमुख हैं।

 गेहूँ के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन गेहूँ, रबी की महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल मानी गई है।
 भारत का गेहूँ उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है।

 बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर भारत को भी वर्ष 2020 तक खाद्यान्न उत्पादन दुगना करना होगा, तभी हम इस खाद्यान्न चुनौती का सामना कर सकेगें। गेहूँ उत्तर भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। 
अच्छी उपज एवं आमदनी प्राप्त करने के लिए इस फसल को बुवाई से लेकर भण्डारण तक कई प्रकार की बीमारियों से बचाना होता है। 



गेहूँ की फसल में समय रहते हुए इन बीमारियों की पहचान कर नियन्त्रण के उपाय अपनाने से किसान अच्छी उपज व गुणवत्तायुक्त उत्पादन ले सकते हैं एवं राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान प्रदान कर सकते हैं। 
क्षण क विसंचार गेरूई या रतुआ रोग :-यह रोग गेहूँ की फसल का प्रमुख रोग माना जाता है यह फफूँद जनित रोग होता है तथा इस रोग में भूरे पीले, काले रंग के लक्षण दिखाई पूर्व देते हैं। 
भूरे रतुआ का प्रकोप प्राय: अधिक देखा जाता है। 

गेहूँ में गेरूई या रतुआ रोग तीन प्रकार के कवकों द्वारा उत्पन्न होता है।... गन्ने के हानिकारक कीटों का जैविक प्रबंधन वर्ष पूर्व भारत में गन्ना की खेती एक नगदी तथा औद्योगिक फसल के रूप में की जाती है, जिसका उत्पादन लगभग 355.5 मिलियन टन तथा क्षेत्रफल लगभग 5.2 मिलियन हैक्टेयर है।

 गन्ने की फसल को कीटों की लगभग 200 से अधिक से जातियां क्षति पहुँचाती हैं जिसमें 12 से 15 जातियाँ बहुत अधिक क्षति पहुँचाती हैं जिसका सीधा असर गुड़ एवं चीनी उत्पादन पर पड़ता है।



 हानिकारक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से में लाभादायक जीवों की हानि, कीट सहनशीलता में वृद्धि तथा पर्यावरण न प्रदूषण इत्यादि कई समस्याएं पैदा हो रही हैं, इन्हीं समस्याओं को देखते ना हुए हानिकारक कीटों के प्रबंधन के लिए जैविक विधियों को अपनाने की आवश्यकता है।...

        Home  | Agri news |  Crop care |  Video

Comments

Popular posts from this blog

गिलोय की रोजगारपरक खेती | महामारी कोरोना व डेंगू के उपचार के लिए गिलोय की महत्वमा | गिलोय का वानस्पतिक नाम टीनोस्पोरा कार्डियोकेलिया

वर्तमान परिपेक्ष्य में फैली महामारी कोरोना व डेंगू के उपचार के लिए गिलोय की महत्वमा बहुत अधिक बढ़ गई है। गिलोय की मांग अब लगातार बढ़ने की संभावनाओं को देखते हुए इसकी खेती आय वृद्धि के लिए एक सुगम उपाय है। गिलोय की औषधी महत्ता के संबंध में अब जनता जागरूक होने भी लगी है। महत्व एवं उपयोग: गिलोय का वानस्पतिक नाम टीनोस्पोरा कार्डियोकेलिया है। यह एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है एवं इसे भिन्न-भिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे हिन्दी में गिलोय, संस्कृत में अमृता तथा आयुर्वेद भाषा में गुडुची, चक्रांगी आदि नामों से जाना जाता है। इसे ज्वर की महान औषधी माना गया है जो एक बहुवर्षीय लता है। गिलोय में 15.8 प्रतिशत फाइबर, 4.2-11.2 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट तथा 3 प्रतिशत वसा पायी जाती है। गिलोय को डेंगू, बर्ड लू, अचानक बुखार, सर्दी, खांसी, बदन दर्द, स्वाइन फ्लू, मूत्र संबंधित बीमारियाँ, कुष्ठ रोग, फाइलेरिया (हाथीपाँव), गठिया संबंधित बीमारियाँ, लीवर विकार संबंधित बीमारियाँ, पीलिया तथा बवासीर आदि के उपचार में उपयोग में लिया जाता है।   जलवायुः  यह उष्ण तथा उपो...

fungicide

field agri You are very welcome on this forum, we hope that you will enjoy here. Crop chemical fungicide amistar top amistar score abic redomilgold ampact xtra redomilgold gloit filia hoshera kavach splash taspa