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गिलोय की रोजगारपरक खेती | महामारी कोरोना व डेंगू के उपचार के लिए गिलोय की महत्वमा | गिलोय का वानस्पतिक नाम टीनोस्पोरा कार्डियोकेलिया

गिलोय का वानस्पतिक नाम टीनोस्पोरा कार्डियोकेलिया



वर्तमान परिपेक्ष्य में फैली महामारी कोरोना व डेंगू के उपचार के लिए गिलोय की महत्वमा बहुत अधिक बढ़ गई है। गिलोय की मांग अब लगातार बढ़ने की संभावनाओं को देखते हुए इसकी खेती आय वृद्धि के लिए एक सुगम उपाय है। गिलोय की औषधी महत्ता के संबंध में अब जनता जागरूक होने भी लगी है। महत्व एवं उपयोग: गिलोय का वानस्पतिक नाम टीनोस्पोरा कार्डियोकेलिया है।

यह एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है एवं इसे भिन्न-भिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे हिन्दी में गिलोय, संस्कृत में अमृता तथा आयुर्वेद भाषा में गुडुची, चक्रांगी आदि नामों से जाना जाता है। इसे ज्वर की महान औषधी माना गया है जो एक बहुवर्षीय लता है।

गिलोय में 15.8 प्रतिशत फाइबर, 4.2-11.2 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट तथा 3 प्रतिशत वसा पायी जाती है। गिलोय को डेंगू, बर्ड लू, अचानक बुखार, सर्दी, खांसी, बदन दर्द, स्वाइन फ्लू, मूत्र संबंधित बीमारियाँ, कुष्ठ रोग, फाइलेरिया (हाथीपाँव), गठिया संबंधित बीमारियाँ, लीवर विकार संबंधित बीमारियाँ, पीलिया तथा बवासीर आदि के उपचार में उपयोग में लिया जाता है। 

 जलवायुः 

यह उष्ण तथा उपोष्ण जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है। 

 मिट्टी:

 यह सभी प्रकार की मृदाओं में उगायी जा सकती है। इसके अच्छे विकास के लिए अच्छे जल निकास वाली कार्बनिक पदार्थ युक्त हल्की रेतीली मिट्टी उपयुक्त होती है। 

 भूमि की तैयारी : 

कलम लगाने से पहले जुताई करके खेत को खरपतवार मुक्त कर लिया जाता है। प्रसार-कटिंग के द्वारा । 

 बीज दर :

 2500 कटिंग प्रति हैक्टेयर के लिए उपयुक्त होती है। कटिंग (कलम) हमेशा 0.5 से 1.0 से.मी. मोटाई की लेनी चाहिए। साथ ही ऐसी कलम का चयन करना चाहिए जो गांठयुक्त हो । कलम तैयार करते समय कलम के एक हिस्से को तिरछा तथा दूसरा हिस्सा गोल काटना है। गोल हिस्से को भूमि में दबा दिया जाता है। 
 
रोपाई : 

अधिक पैदावार के लिए 3 मीटर x 3 मीटर की दूरी पर कलम खेत में लगानी चाहिए। औषधीय महत्व को अधिक बढ़ाने के लिए इनको नीम व आम के पौधों के पास •लगाना चाहिए जिससे गिलोय के औषधीय गुण बढ़ जाते हैं। 
 
खाद व उर्वरक : 

100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के हिसाब से जुताई के समयं खेत में मिला देना चाहिए। 75 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए। 

 कीटनाशक :

इस फसल में कोई विशेष प्रकार की कीट व बीमारियाँ नही लगती है। 

 सिंचाई: 

यह मुख्यत: वर्षा आधारित फसल के रूप में उगायी जाती है, फिर भी आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। 

 कटाई: 

पके हुए पौधे की टहनियों को काटकर इकट्ठा कर लिया जाता है तथा उनको बाद में छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर छाया में सुखा लिया जाता है। साथ ही इनको सुखाने के बाद भण्डारित कर लिया जाता है। उपज 10-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज मिल जाती है।
 
उपयोग करने के तरीके: 
 
1. एलर्जी में उपयोग गिलोय की टहनियों को सुखाकर उनका पाउडर बनाकर सुबह-सुबह 1 से 2 चम्मच खाली पेट गुनगुने पानी से 3-4 महीने लगातार लेने पर एलर्जी में काफी हद तक फायदा रहता है। 

 2. बुखार में उपयोग : सामग्री: 1 गिलास पानी, 2-3 गिलोय के कटे हुए टुकड़े, आधी पत्ती पपीता, 3-4 नीम की कच्ची पत्ती, एक लौंग, 3-4 काली मिर्च, 1-2 पिप्पली, 1-2 तुलसी के पत्ते, आधा चम्मच हल्दी। 

 काढ़ा बनाने की विधिः 

सभी सामग्रियों को पीसकर उनको एक गिलास पानी में मिलाकर उबाला जाता है। जब पानी जलकर 1/3 हिस्सा रह जाये, तो इसको छानकर बुखार से पीड़ित रोगी को पिला देना चाहिए। यह दिन में 2 बार पिलाया जाना चाहिए और तब तक उपयोग में लेना चाहिए, जब तक रोगी का बुखार सही नहीं हो जाये। 

 कोरोना रोग से बचाव के लिए :
 
कोरोना रोग से बचाव के लिए भी इसका काढ़ा बनाकर उपयोग में लेने से कोरोना रोग की रोकथाम में काफी हद तक कारगर सिद्ध हुआ है। 

 प्रस्तुतिः 

संगीता यादव, उद्यान विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र, चौमूँ, डॉ. एस. एस. राठौड़, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र, चौमूं एवं सुनीता पारीक, व्याख्याता, पारीक गर्ल्स कॉलेज, चौमूँ, जिला जयपुर (राज.)


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